106
दूलह राम, सीय दुलही री
घन-दामिनि बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नखसिख निबही, री ||
ब्याह-बिभूषन-बसन-बिभूषित, सखि अवली लखि ठगि सी रही, री|
जीवन-जनम-लाहु, लोचन-फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही, री ||
सुखमा सुरभि सिँगार-छीर दुहि मयन अमियमय कियो है दही, री|
मथि माखन सिय-राम सँवारे, सकल भुवन छबि मनहु मही, री ||
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा अतुल, न जाति कही, री |
रुप-रासि बिरची बिरञ्चि मनो, सिला लवनि रति-काम लही, री ||