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राग गौरी
राम-लषन जब दृष्टि परे, री |
अवलोकत सब लोग जनकपुर मानो बिधि बिबिध बिदेह करे, री ||
धनुषजग्य कमनीय अलनि-तल कौतुकही भए आय खरे, री |
छबि-सुरसभा मनहु मनसिजके कलित कलपतरु रुप फरे, री ||
सकल काम बरषत मुख निरखत, करषत, चित, हित हरष भरे, री |
तुलसी सबै सराहत भूपहि भलै पैत पासे सुढर ढरे, री ||