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गीतावली पद 71 से 80 तक/पृष्ठ 8

(78)

राग सारङ्ग
जबतें राम-लषन चितए, री |
रहे इकटक नर-नारि जनकपुर, लागत पलक कलप बितए, री ||

प्रेम-बिबस माँगत महेस सों, देखत ही रहिये नित ए, री |
कै ए सदा बसहु इन्ह नयनन्हि, कै ए नयन जाहु जित ए, री ||

कौऊ समुझाइ कहै किन भूपहि, बड़े भाग आए इत ए री |
कुलिस-कठोर कहाँ सङ्कर-धनु, मृदुमूरति किसोर कित ए, री ||

बिरचत इन्हहिं बिरञ्चि भुवन सब सुन्दरता खोजत रित ए, री |
तुलसिदास ते धन्य जनम जन, मन-क्रम-बच जिन्हके हित ए, री ||