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गीतावली पद 81 से 90 तक/पृष्ठ 5

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भूपति बिदेह कही नीकियै जो भई है।
बड़े ही समाज आजु राजनिकी लाज-पति,
हँाकि आँक एक ही पिनाक छीनि लई है।1।

मेरो अनुचित न कहत लरिकाई-बस,
मन परमिति और भाँति सुनि गई है।
नतरू प्रभु -प्रताप उतरू चढ़ाय चाप,
देतो पै देखाइ बल, फल , पापमई है।2।

भूमिके हरैया उखरैया भूमिधरनिके,
बिधि बिरचे प्रभाउ जाको जग जई है।
बिहँसि हिये हरषि हटके लषन राम,
सोहत सकोच सील नेह नारि नई है।3।

सहमी सभा सकल , जनक भये बिकल,
राम लखि कौसिक असीस-आग्या दई है।
तुलसी सुभाय गुरूपँाय लागि रघुराज,
ऋषिराजकी रजाइ माथे मानि लई है।4।