Last modified on 31 मई 2011, at 16:58

गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 10

(100)

ऋषि नृप-सीस ठगौरी-सी डारी।
क्ुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी।1।

सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी।
पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी।2।

अति सनेह-कातरि माता कहै, सुनि सखि! बचन दुखारी।
बादि बीर -जननी-जीवन जग, छत्रि -जाति- गति भारी।3।

जो कहिहै फिरे राम-लखन घर करि मुनिमख-रखवारी।
सो तुलसी प्रिय मोहिं लागिहै ज्यों सुभाय सुत चारी।4।