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ऋषि नृप-सीस ठगौरी-सी डारी।
क्ुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी।1।
सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी।
पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी।2।
अति सनेह-कातरि माता कहै, सुनि सखि! बचन दुखारी।
बादि बीर -जननी-जीवन जग, छत्रि -जाति- गति भारी।3।
जो कहिहै फिरे राम-लखन घर करि मुनिमख-रखवारी।
सो तुलसी प्रिय मोहिं लागिहै ज्यों सुभाय सुत चारी।4।