093.रागसारङ्ग
राम कामरिपु-चाप चढ़ायो |
मुनिहि पुलक, आनन्द नगर, नभ निरखि निसान बजायो ||
जेहि पिनाक बिनु नाक किए नृप, सबहि बिषाद बढ़ायो |
सोइ प्रभु कर परसत टुट्यो, जनु हुतो पुरारि पढ़ायो ||
पहिराई जयमाल जानकी, जुबतिन्ह मङ्गल गायो |
तुलसी सुमन बरषि हरषे सुर, सुजस तिहू पुर छायो ||