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गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 3

093.रागसारङ्ग

राम कामरिपु-चाप चढ़ायो |
मुनिहि पुलक, आनन्द नगर, नभ निरखि निसान बजायो ||

जेहि पिनाक बिनु नाक किए नृप, सबहि बिषाद बढ़ायो |
सोइ प्रभु कर परसत टुट्यो, जनु हुतो पुरारि पढ़ायो ||

पहिराई जयमाल जानकी, जुबतिन्ह मङ्गल गायो |
तुलसी सुमन बरषि हरषे सुर, सुजस तिहू पुर छायो ||