राहों में तुम्हारी हम, जब-जब भी बिखर जाते।
हम खुद को मिटा देते, हम मिट के संवर जाते॥
दो लम्हों की गफलत से बरसों की ये दूरी बनी-
हम आ ही रहे थे तुम, थोड़ा तो ठहर जाते॥
इन आँखों की कश्ती पर करते जो भरोसा तो-
हर गम के समन्दर से तुम पार उतर जाते॥
मिलता न सहारा जो, इस दर्द को आँसू का
हम कैसे बयां करते, हम बोलो! किधर जाते?