लहरों के कलरव से शीतल
इस छाया के नीचे दो पल,
मैं थके हुए ये पद पसार,
सुन लूँ वह ध्वनि जो बार-बार,
आती है निराश प्राणों से चल ।
(गीत माधवी, पृष्ठ 7)
लहरों के कलरव से शीतल
इस छाया के नीचे दो पल,
मैं थके हुए ये पद पसार,
सुन लूँ वह ध्वनि जो बार-बार,
आती है निराश प्राणों से चल ।
(गीत माधवी, पृष्ठ 7)