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गीत-शृंगारिका / धीरज पंडित

जुगुत बर्नेइलो तोह परेम जताय के
हय की करलोॅ हे धानी चुड़ी खनकाय के

मंगिया मे देखों तोरोॅ लाली रे सिनूरवा
उगलोॅ सुरूज जेना भोरे-भिनुसरवा
नैना के ताकै बदरा, कजरा लगाय के-हय कि...

चम-चम चमकै माँगे पे टीका
चन्द्रमा के जोॅत जेना होय जाय फीका
केशिया कुहकि मारै गजरा लगाय के-हय कि...

हिलिर-मिलिर करै कानोॅ रऽ बाली
अँखिया जुड़ाबै देखी अंगिया रऽ जाली
नाक नय-नय-ना-ना करै नथिया हिलाय के-हय कि...
कमर लचकै जेना घैला रोॅ पनियाँ
चलते कदम चुमै सोना सम जवनियाँ
बोलै छै चुनरी तोरोॅ धरती लोटाय के-हय कि....

रूनूर-झूनूर करै गोड़ोॅ के पायल
सुनि-सुनि हिया मोरा, होय जाय घायल
गावै ई ‘धीरज’ सेजिया पे जाय के- हय कि....