मैं तो भूला राग-रंग सब
तुम ही कहो प्रिये क्या गाऊँ मैं
आता वो दिन याद कि जब मैं
पंख लगा उड़ता कानन में
आनन होता थ दर्पण में
दर्पण होता था आनन में
अब ना कानन, अब ना दर्पण
आनन अब क्या सजाऊँ मैं………।।
मैं तो भूला राग-रंग सब
तुम ही कहो प्रिये क्या गाऊँ मैं
आता वो दिन याद कि जब मैं
पंख लगा उड़ता कानन में
आनन होता थ दर्पण में
दर्पण होता था आनन में
अब ना कानन, अब ना दर्पण
आनन अब क्या सजाऊँ मैं………।।