मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।
चुप कि मलय मारुत के जी में शोर नहीं भर जाये,
चुप कि चाँदनी के डोरों को शोर नहीं उलझाये,
मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।
चुप कि तारकों की समाधि में दूख उठेगा जय-रव,
चुप कि चाँद में बिदा क्षणों की दर्शन-भूख न संभव।
उठो मधुर! दरवाजे खोलो, वातायन खुल जाये,
सदियों की उजड़ी साँसों में आज प्राण-प्रभु आये,
मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।
रचनाकाल: खण्डवा-१९४५