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गीत / कन्हैया लाल सेठिया

सीपी, पाळ पेट में मोती
गूंगी मरण बूलावै क्यूं ?

परख जींवतौ रवै जगत री
तो ओ मरणूं जीणो है,
बिंधा काळजो कंठां बंधसी
जद मोती लाखीणो है,

कूख उजाळूंली मैं थारी
समदर तूं अकूळावै क्यूं ?
सीपी, पाळ पेट में मोती
गूंगी मरण बुुलावै क्यूं ?

चत्रण सौरम बसा प्राण में
झूठा हाड़ घसावै क्यूं ?

रगड़ धापज्या गुण नै छीजै
तो ओ पिसणो हंसणो है,
कंचन काया घसा मनैं तो
प्रभु लिलाड़ पर बसणो है,

जस फैला स्यूं जामण थारो
धरती तूं पिसतावै क्यूं ?
चत्रण सौरम वसा प्राण में
सूखा हाड़ घसावै क्यूं ?

दिवला ले’र पराई चिन्ता
हिवड़ो रोज दझावै क्यूं ?

नहीं निछतरी भौम, अंधेरो-
जाणै तो के बळणो है ?

नेह पियो तो जोत नैण री
बण् कर मनैं उपडणूं है,

कारज सारूं जलम सुधारूं
बाती तूं घबरावै क्यूं ?
दिवला ले’र पराई चिन्ता हिवड़ो रोज दझावै क्यूं ?