शब्द थोड़े और चुनकर
गीत कोई गुनगुनाना,
सीखता है एक लड़का
जिस तरह से चहचहाना।
चोंच-पंजे, पंख-तिनके
फूल-ख़ुशबू और काँटे
रेशमी खुलती कढ़ाई
झनझनाते हुए चाँटे
याद करना इक छुअन को
मौन जीकर मुस्कुराना।
धूप, कोई देह-छाया
मौसमों के रंग गहरे
ताजगी लिखती किरन के
कुछ लिफाफे़ और ठहरे
आँख पर चुपके हथेली
कान में कुछ फुसफुसाना।
हर तरफ़ छाया हुआ जब
एक-सा मौसम जिरह का
है चुनौती इस समय अब
गीत लिखना उस तरह का
सीखता है एक लड़का
जिस तरह ‘कैंची चलाना‘।