गूंज भरे हरे चरागाहों से
क्षितिजों की ओर गई राहों से
दूर कहीं
धुंधआते शहरों के
सांवली दुपहरों के आस-पास
गीत नया जन्मा।
बच्चा है
भीड़ भरी सड़कों पर रेंग रेंग चलता है
दुर्घटनाओं ही के साये में पलता है
पहियों का कोलाहल
रेलों की सीटियां घबरा कर सुनता है
पटरी पर बिछी हुई नौजवान खुदकुशी
चौंक कर निरखता है
जाने क्या गुनता है।
लिए हुए कुम्हलाये ख्वाबों का
कागज़ी गुलाबों का रिक्त हास
गीत नया जन्मा।
नई परिस्थितियों में
नई मनःस्थितियों का दर्पण बन जायेगा
गायेगा नहीं किन्तु तनिक गुनगुनाएगा।
तितली को पंख से
फूलों को गंध से
ली को मानवता से
मन को संवेदना से जोड़ेगा
लेकिन भावुकता की
रीत गई छंदों की रूढ़ियाँ तोड़ेगा।
जीने की शर्तों से जुड़ा हुआ
अंकुराती पीढ़ी का नव-प्रयास
गीत नया जन्मा।