क्यों प्रणय की
साधना में मिल रही है पीर हमको-
हम कि बस इक मन चुराये और तुमने चोर समझा।
चहचहाते पंक्षियों सँग साँझ-सिंदूरी सुहावन।
चाँद अपनी चाँदनी में जी रहा था पूर्ण यौवन।
मध्य उनके प्रेम है री! या नहीं यह जानने को-
गा रहे थे पीर अपनी और तुमने शोर समझा।
हम कि बस इक मन चुराए ...
पुष्प निंदा कर न सकता है भ्रमर के चुंबनों का।
ये सहज सौंदर्य वर्धक पुष्प का औ मधुवनों का।
देख कर यह दृश्य हमने बस भ्रमर का प्रेम पाया-
और तुमने रुक्ष होकर बस उसे बरज़ोर समझा।
हम कि बस इक मन चुराए ...
प्राण! तुमसे है निवेदन तुम हमें स्वीकार कर लो।
देह की घुर वेदनाएं कह रहीं हैं अंक भर लो।
मोरनी! तन झूम उठता है छुअन पाकर तुम्हारी-
तुम हमें समझी न समझी किंतु मन का मोर समझा।
हम कि बस इक मन चुराए ...