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गीली मिट्टी / भावना सक्सैना

अब जल्दी सूख जाती है
गूँथने में ही कुछ कमी होगी
स्निग्धता छुअन में न हो
या हवा में कम नमी होगी।
पकने से पहले पड़ें दरारें जो
पकने पर और फैल जाती हैं
भीतर की रिसन और टूटन
खोखला तन मन करके जाती है।

दो बूँद तरलता के बढ़ा
क्यों न और इसको गूँथें ज़रा
बीन दें कचरा सभी ज़माने का
जोड़ स्नेह के अणु-कण
नम हाथों से छूकर फिर-फिर
ऐसे गूँथें कि सम हो बाहर भीतर
हो नरम कि सहज ही ढले
ताप समय का जब पकाए इसे
पकके चमके ये फिर सदा के लिए।