गुच्छनि के अवतंस लसै सिशि –पच्छनि अच्छ किरीट बनायो .
पल्लव लाल समेत छरी कर पल्लव -सो ‘मतिराम’ सुहायो .
गुंजनि के उर मंजुल हार निकुंजनि ते कढि बाहिर आयौ .
आजु की रूप लखे ब्रजराज को आजु ही आँखिन को फल पायो .
गुच्छनि के अवतंस लसै सिशि –पच्छनि अच्छ किरीट बनायो .
पल्लव लाल समेत छरी कर पल्लव -सो ‘मतिराम’ सुहायो .
गुंजनि के उर मंजुल हार निकुंजनि ते कढि बाहिर आयौ .
आजु की रूप लखे ब्रजराज को आजु ही आँखिन को फल पायो .