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गुजर गए दिन / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

गुजर गये दिन
जेसे-तैसे।
सूरज के कंधों पर-
डरे हुए बादल से।
जहाँ भी गया मैैं
चौतरफा भीड़ मिली घेर कर,
खोजता रहा उस आवाज को
चली गयी जो मुझको-
टेरकर;
लहरों ने रेत पर लिखा-
मेरा मन टूटा है
जैसे-जैसे।
अधरों को बार-बार छू पाई
केवल दो शक्तियाँ
स्वर वाली वंशी या
मधुर गीत पंक्तियाँ
कितने ही शब्दों के-
रंग उड़ गये,
जो कि नहीं थे-
ऐसे-वैसे।