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गुज़रते हुए-3 / अमृता भारती

तूने अपने बाल
मेरे चेहरे पर खोल दिए
मेरी पलकें
महीन और कँटीली हो गईं
तेरा अन्धेरा बाने के लिए

शीशे में तेरे होंठ
मेरी आँखों के क़रीब थे
और वे
गारे को पतला करने लगी थीं

तेरे अन्दर फ़्रेम भी टूटने लगा है
अब ज़रूर गिर जाएगा
आईना
जिसमें तू मुझे
और मैं तुझे देखते हुए बैठे हैं

बीमारी तुझे उसके अन्दर दफ़्न कर देगी
और तू सोई हुई
मेरी तरफ़ फेंका करेगी
अक्स अपनी क़ब्र का

और तब एक दिन
'एक बे-दर-ओ-दीवार का घर'
मुझे सड़क से बुला लेगा ।