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गुज़रते हैं ऐसे में / दिनेश जुगरान

कहीं बीच टूट जाता है सामंजस्य...तन के किसी भाग में,
लगता है डर... या होता है वो मन का कोई ...हिस्सा
धमनियों में... तैरती हैं एक अजीब जड़ता

एक हिस्सा सोये... एक हिस्सा जागे करे मन उन शब्दों
को बो...ल...ने का, जिन्हें हम कभी न...बोल...पाते हों
क्षण...वे होते हैं सबसे आत्मीय जो गुज़रते हैं ऐसे में... जिनमें
न कोई लेता है शपथ न देता है आ...श्...वा....स...न!