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गुड़िया-10 / नीरज दइया

उस सागर में
डूबने की चाह
लिए मेरा मन
आज बेचैन है

जानता हूँ चैन
उसे भी नहीं
मगर वह
सीमा में बंधी है

एक बार
बस एक बार
भरपूर कर के प्यार
डूब के जीना चाहता हूँ
दूसरे शब्दों में
मर कर भी
उसे जिंदा चाहता हूँ ।