गुड़िया रानी चल दीं दुल्हन बन के ।
मारवाड़ी घाघरे में बन-ठन के ।।
जयपुरिया चूनरिया ओढ़े
बीकानेरी बोर ला
घूँघट में से ऐसे चमके
जैसे सूरज भोर का
ओढ़नी से रूप झरे छन-छन के ।
मारवाड़ी घाघरे में बन-ठन के ।।
नीचे-नीचे पलकें मीचे
दबी जा रही लाज से
बीच हथेली मेहन्दी दमके
अंग-अंग पुखराज से
डोली में बिठाई बड़ी कह-सुन के ।
मारवाड़ी घाघरे में बन-ठन के ।।
आगे-आगे गाजे-बाजे
पीछे-पीछे पालकी
जिसके पीछे चलें बराती
जिनकी चाल कमाल की
गोरखा सिपाही जैसे पलटन के ।
मारवाड़ी घाघरे में बन-ठन के ।।