बच्ची खेल रही है गुड़िया से
और परेशान है कि
गुड़िया कुछ बोल क्यों नहीं रही
सोई पड़ी है जस की तस
वो अपनी गुड़िया को रोटी खिला रही है
उसे दुलार रही है
पुचकार रही है
मनुहार रही है
रोटी को उसके मुँह में ठूँसे दे रही है
मगर गुड़िया है कि
न खिलखिला रही है
न ही झपटकर रोटी के टुकड़े को
अपने मुँह में रखने को ज़िद कर रही है
न उसकी तरह
मम्मी से रूठते हुए
अपनी बात को मनवाने की ज़िद कर रही है
पाँच साल की बच्ची समझ नहीं पा रही है
कि सुबह से भूखी गुड़िया
खा क्यों नहीं रही है
क्यों है नाराज़
कि कुछ बोल ही नहीं रही
ग़ुस्सा है तो चीख़ क्यों नहीं रही
दर्द है अगर तो रो क्यों नहीं रही
वो कभी थपकियों से उसे सहलाती है
तो कभी उसे उठाकर कंधे से लगाती है
मगर गुड़िया है कि
बगैर किसी हलचल
निस्तेज पड़ी है बच्ची कि बाँहों में
और बच्ची है
परेशान कि
गुड़िया क्यों नाराज़ है.
रचनाकाल : 17 अप्रैल 2011