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गुड़ / राम करन

चींटी चाट रही थी गुड़,
रस पीती थी सुड़-सुड़-सुड़।
इतना पी, इतना पी वह,
पेट लगा करने गुड़-गुड़।

तब तक निकली तिलचट्टी,
वह भी फूली खाकर गुड़।
हट्टी-कट्टी खूब हुई,
नही सकी पर वापस मुड़।

हवा लगा जब गुड़ को तो,
हुआ चिपचिपा गीला गुड़।
बढ़ा जायका लेकिन तब
चट्टर-पट्टी जैसा गुड़।

मच्छर जी ने देखा जब,
सोंचा - खाएं हम भी गुड़।
जैसे बैठे चिपके पँख,
फिर वे कभी न पाए उड़।