मैं गाँव जाऊंगी
ब्याह है सखी के घर
शहर में तडपती बैचेन वह लडकी
गिडगिडाती बैचेन हुई जाती है
सहलाती अपने हाथ के गुदने
खुजलाती और सहलाती
बना लेगी दिल्ली से लातेहार की चौडी सडक
सरपट भागेगी तेजी से
पकड़ नहीं पायेगा कोई उसे
इस बार गाँव में
बाँट देगी हसुंली और पाज़ेब
थोडा काजल में दूध मिलाकर वह पीठ पर
अपने भूले प्रेमी का नाम मिटाकर
छीन लेगी समय से स्त्री पुरूष के भेद की ताकत
मिट्टी डाल देगी अन्तर पर
हाथ में लेप कर गोबर थाप लेगी कागज स्मृतियों पर
सखी का ब्याह है
और मालकिन के बच्चे की छुट्टियाँ
नौकरी जाने की आशंका
फिर से गुजरने लगती है नौ सूइयाँ उसके बदन पर
इस पीड़ा से नहीं गुजरेगी हर बार