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गुनगुनाती है / अनिरुद्ध नीरव

स्वरों पर
कुछ शब्द आते हैं
कि ज्यों नाख़ून पर
चाँदी के सिक्के
     टनटनाते हैं

कहीं पर
आघात की हलचल
कहीं पर
कुछ चोट का अनुभव
चोट पर
कुछ चिनगियाँ बेचैन
और फिर
विस्फोट का अनुभव
इसी विस्फोट से
इक मोमबत्ती को जलाते हैं

नाचता है फ़ैन इक लय में
गुनगुनाती है दरो-दीवार
ताल पर
खिड़कियों के पल्ले
अलगनी
बजती है जैसे तार

तरब के तार अपने
हम इसी सुर से मिलाते हैं ।