अपनी दुआओं के ज़ख़्मी पैरों से
चलता जाता हूँ
और ये काँटे-दार रास्ता
उस वीरान मस्ज़िद तक जाता है
जिस के तमाम गुम्बद-ओ-मेहराब
मेरे गुनाहों की धुंद में
डूबे हुए हैं
अपनी दुआओं के ज़ख़्मी पैरों से
चलता जाता हूँ
और ये काँटे-दार रास्ता
उस वीरान मस्ज़िद तक जाता है
जिस के तमाम गुम्बद-ओ-मेहराब
मेरे गुनाहों की धुंद में
डूबे हुए हैं