Last modified on 19 मार्च 2020, at 23:37

गुमनाम ख़त / मनीष मूंदड़ा

अपने किराए के कमरे का समान समेटते हुए
आज शाम
तुम्हारे कुछ पुराने ख़त मिले
वो गुमनाम ख़त
जो तुमने किसी और के लिए लिखे थे
मेरे कमरे में बैठ कर
मेरे सामने
मुझसे बातें करते हुए
मन में फिर से वही सवाल उठ आए
किसके लिए थे ये ख़त?
क्यूँ किसी का नाम ना होता था इन पर?
क्यूँ मेरे पास रख छोड़ जाते थे तुम?
आज भी मेरा मन यह सोच रहा हैं
कहीं ये मेरे लिए तो नहीं थे?