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गुमराही में कौन अब घर का पता देगा मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही

गुमराही में कौन अब घर का पता देगा मुझे
कौन अब मायूसियों में हौसला देगा मुझे

सल्ब* हो जाएँगे जब ग़म से मेरे होशो-हवास
कौन सरहाने मेरे आकर सदा देगा मुझे

कौन अब रक्खेगा मुझको अपनी तस्बीहों* में याद
कौन अब रातों को जीने की दुआ देगा मुझे

भीग जाएगी पसीने से जो पेशानी मेरी
कौन अपने नर्म आँचल की हवा देगा मुझे

कौन अब पूछेगा मुझसे मेरी माजरी का हाल
कौन बीमारी में ज़िद करके दवा देगा मुझे

आस्माँ पहले छिना था, अब ज़मीं भी छिन गई
देने वाला इससे गहरा ज़ख़्म क्या देगा मुझे

1-सल्ब--लुप्त 2-तस्बीहों-माला