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गुमसम तनहा बैठा होगा / जतिन्दर परवाज़

गुमसम तनहा बैठा होगा
सिगरट के कश भरता होगा

उसने खिड़की खोली होगी
और गली में देखा होगा

ज़ोर से मेरा दिल धड़का है
उस ने मुझ को सोचा होगा

सच बतलाना कैसा है वो
तुम ने उस को देखा होगा

मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा

ठंडी रात में आग जला कर
मेरा रास्ता तकता होगा

अपने घर की छत पे बेठा
शायद तारे गिनता होगा