मैंने
आदमी के गुम आकाश से
टँगे हुए
सूर्योदय उतारे थे
उसके अन्धेरों को इकट्ठा करते हुए
मैं नहीं जानती थी
कि अपना मर्म चीर कर
मुझे ही उगना होगा
मैंने
आदमी के गुम आकाश से
टँगे हुए
सूर्योदय उतारे थे
उसके अन्धेरों को इकट्ठा करते हुए
मैं नहीं जानती थी
कि अपना मर्म चीर कर
मुझे ही उगना होगा