Last modified on 19 अक्टूबर 2013, at 15:18

गुम आकाश से / अमृता भारती

मैंने
आदमी के गुम आकाश से

                  टँगे हुए
सूर्योदय उतारे थे

उसके अन्धेरों को इकट्ठा करते हुए
मैं नहीं जानती थी
कि अपना मर्म चीर कर
मुझे ही उगना होगा