Last modified on 7 अगस्त 2009, at 23:22

गुरु गोविंदसिंह / वियोगी हरि

जय अकाल-आनंद-भव नव मकरंद-मलिंद।
शक्ति-साधना सिध्दवर, असिधर गुरुगोविंद॥

पराधीनता-सिंधु मधि, डूबत हिंदू हिंद।
तेरे कर पतवार अब, पतधर गुरुगोविंद॥

धर्म-धुरंधर, कर्म-धर, बलधर बखत बलंद।
जयत धनुर्धर, तेग धर, तेग बहादुर-नंद॥

असि-ब्रत धारयो धर्म पै, उमँगि उधारयो हिंद।
किए सिक्ख तें सिंह सब, धनि-धनि गुरुगोविंद॥

दसवें गुरु के राज में रही हिंद-पत-लाज।
औरंगशाही पै गिरी बाह गुरू की गाज॥

रहती कहँ हिंदून की आन बान अरु शान।
ढाल न होती आनि जो गुरुगोविंद-कृपान॥

संघ शक्ति-ब्रत-मित्र कै, वृषगत बिप्लव मित्र।
कै पवित्र बलि-चित्र-पट गुरुगोविंद-चरित्र॥

दिखी न दूजी जाति कहुँ सिक्खन-सी मजबूत।
तेग बहादुर-सो पिता, गुरुगोविंद-सो पूत॥

'माथ रहौ वा ना रहौ, तजै न सत्य अकाल।
कहत-कहत ही चुनि गए, धनि, गुरुगोविंद-लाल॥