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गुरू के बतिया / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

पावस अमावस रात अन्हरिया, वहू पर घटा घनघोर
बिजली चमकै, ठनका ठनकै, वहीं में खोजै चितचोर
रही-रही जुगनू राह दिखावै, भटक रहै चहुँ ओर
छिपलोॅ वस्तु जहाँ जे रहै, वहीं मिलै हथजोड़
खोजतें-खोजतें युग बीती जावै, वस्तु के मिलै नै छोर
भेदी सब के तुरत मिल जाय छै हृदय में जे तोर
धीरज रक्खै तेॅ पार उतरै, नै तेॅ डूबेॅ जलथोड़
गुरू के बतिया याद रख सखियाµछुटतौ बंधन तोर ।