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गुलाबों का दरिया / केदारनाथ अग्रवाल

जिए हम

गुलाबों का दरिया,

महकता-मचलता लिये हम ।


बनाए वसंती-नवेली को अपना,

हृदय से लगाए,

हवा के सुरीले स्वरों में समाए,

सितारों की आंखों से

हम मुस्कराए,


जिए हम

गुलाबों का दरिया,

महकता-मचलता लिए हम ।


('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )