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गुलाब / प्रज्ञा रावत

कितना भी खराब हो समय
एक गुलाब के फूल से
ज़रूर स्वागत करूँगी मैं
तुम्हारा कविता

कितना ही थका हो तन
मेहमान से पूछे बिना
उम्दा चाय चढ़ा आऊँगी
चूल्हे पर मैं

कितनी ही आगे बढ़ जाओ
कविता तुम
तुम्हें दो और दो बराबर
चार नहीं होने दूँगी कभी मैं।