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गुलाब के गीतों में / रामनरेश पाठक

आज आई है
चांदनी यह चैत की

मेरी आँखों के सामने
केवल तुम हो

आकाश धूमिल है
राका की मदिरा फैली है
तुम्हारी चुटकी में
एक ताजा गुलाब है

और पहली बार
मेरे सामने तुम हो

वर्षों पहले
गंगा की रेती पर
मैंने कुछ गीत लिख दिए थे

उन्हें तुम चुनती आई हो

तो आओ
मैं तुम्हारे गुलाब के गीतों में
खो जाऊं !