गुलाब भी थे
तुम्हारी आँखों में,
शहद से भरा हुआ लोटा,
यात्राएँ जो अभी अधूरी थीं,
घाट, नदी और समुद्र।
धुआँसी सुबहें, धुआँसी सुबहें,
मन्दिर, घण्टियाँ और गायें,
लाशें, अधजली लाशें
लुभा ले गईं
तुम्हें
अचेतन तक।
मृत्यु भी बचा नहीं पाई तुम्हें मेरे लिए।