मैंने सारे आभूषण उतार दिये
बोझ तन-मन के सारे डार दिये
पैंरो की पायल
करती थी घायल
हाथों के कंगन
बन गये बंधन
बंधन वे सारे उतार दिये
हाथों की मेंहदी
माथे की बिंदी
उंगली के छल्ले
घूंघट के पल्ले
सिर से अपने उतार दिये
सीता की यादें
सावित्री की बातें
सतियों के आदर्श
झूठे लबादे
भारी लबादे उतार दिये
वो गहनों की जंजीर
देती थी पीर
कसमसाती थी मैं
छटपटाती थी मैं
गुलामी के चिन्ह उतार दिये
रीतियाँ तोड़ी
रस्में छोड़ी
हंसी के पहने
नूतन ये गहने
सारे पुराने उतार दिये।