तेरी किताब के पन्नों से चुराए मैंने,
कुछ अदद सूखे हुए फूल ,
औ’ भीगे
अल्फाज़...
और तमाम वो एहसास,
जो थे बिखरे वहाँ…
समेट कर सजा लिए हैं
अपने दिल में यहाँ,
कभी हो जाएँ वो शादाब,
कभी जी उठें...
रंज उनका न कर तू,
देख पलट कर पन्ने,
गुल-ओ-अल्फाज़
भी कैसे वफ़ा निभाए हैं...
उन्हीं पन्नों पे
रंग-ओ-बू,
अभी भी छाए हैं!
20.09.93