Last modified on 31 जनवरी 2012, at 14:23

गुल-ओ-अल्फाज़ / रेशमा हिंगोरानी

तेरी किताब के पन्नों से चुराए मैंने,
कुछ अदद सूखे हुए फूल ,
औ’ भीगे
अल्फाज़...

और तमाम वो एहसास,
जो थे बिखरे वहाँ…
समेट कर सजा लिए हैं
अपने दिल में यहाँ,

कभी हो जाएँ वो शादाब,
कभी जी उठें...

रंज उनका न कर तू,
देख पलट कर पन्ने,
गुल-ओ-अल्फाज़
भी कैसे वफ़ा निभाए हैं...
उन्हीं पन्नों पे
रंग-ओ-बू,
अभी भी छाए हैं!

20.09.93