एक दिन तुम्हें
मुझे पर बहुत गुस्सा आया
उस गुस्से को देखकर
रह गया मैं बहुत दंग
सोचता रहा जबकि नहीं चाहिए था यह सोचना
क्या उस गुस्से में भी
छिपा है
कहीं तुम्हारे प्यार का कोई रंग
पर बता दूं तुम्हें
मैं नहीं किसी ख़ुशफ़हमी में
भले ही इस बेंच पर पी है अंतरंग होकर
मैंने कई शाम
चाय तुम्हारे संग ।