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गूँज / परवीन शाकिर

ऊँचे पहाड़ों में गुम होती पगडंडी पर
खड़ा हुआ नन्हा चरवाहा
बकरी के बच्चे को फिसलते देख के
कुछ इस तरह हँसा है
वादी की हर दर्ज़<ref>दरार</ref> से झरने फूट रहे हैं


शब्दार्थ
<references/>