फूटती है पहाड़ों से उफन
टकराती, शिलाएँ बहा ले जाती
नही है आवेग जल का-
खुद में सभी कुछ को
भींच लेने
छटपटाता, बिफरता आवेग
चट्टान को जल
और मुझ को गूँज करता हुआ .....
(1980)
फूटती है पहाड़ों से उफन
टकराती, शिलाएँ बहा ले जाती
नही है आवेग जल का-
खुद में सभी कुछ को
भींच लेने
छटपटाता, बिफरता आवेग
चट्टान को जल
और मुझ को गूँज करता हुआ .....
(1980)