Last modified on 23 जुलाई 2008, at 23:29

गूंगे लोग / कुमार मुकुल

अक्सर ज़ोर से बोला करते हैं गूंगे लोग

वे समझते हैं

कि ज़ोर से बोलने पर ही

सुनती है दुनिया

इसी भ्रम में

ख़ुद नहीं सुन पाते वे

कि क्या कह रहे हैं


अल्लसुबह उठते ही वे

अपने उत्तरदायित्व के सपनों में

प्रवेश कर जाते हैं

और अपनी ऊँची आवाज़ से

जगा देना चाहते हैं

सारी दुनिया को वे

हर सोए आदमी को


वे अंतर नहीं कर पाते

कि जगाया जा रहा आदमी

सोया है या मरा

आलसी है या थका


वे सबको अपना भजन

सुना देना चाहते हैं


अहिंसक होते हैं गूंगे लोग

वे सोच भी नहीं सकते

कि दूसरों की आवाज़

दबा देना भी

हिंसा है।