कथित रामप्यारे ने देखे
सपने में गूलर के फूल।
स्वर्ण महल में पाया ख़ुद को
रेशम के वस्त्रों में लकदक
रत्नजड़ित झूले पर झूलें
बीबी- बच्चे उजले झक
दुख- दर्दों के पर्वत सारे
नष्ट हो गए हैं सहमूल।
देशी और विदेशी व्यंजन
ढेरों फल, रोटी-तरकारी
दूध-दही की नदियाँ आँगन
दरवज्जे मोटर सरकारी
क़दम- क़दम पर अफ़सर नौकर
जबरन सेवा में मशगूल।
इसी बीच बच्चे रोए तो
सुन्दर- सुन्दर सपना टूटा
भीतर- बाहर वैसा ही था
जैसा अर्धरात में छूटा
गुदड़ी में उग आए ढेरों
पोर- पोर में चुभे बबूल।
ख़ुद देखें या लोग दिखाएँ
सपने तो केवल सपने हैं
संसद में भी बुने गए जो
कागज- पत्तर ही छपने हैं
सोच- समझकर मिल को निकला
उत्तर दिशि में थूकी भूल।