चौपाई:-
यहि प्रकार नित मारग माही। गज तुरंग रथ लोग निवाही॥
भूपति आय मिलहिं कत आगे। दण्ड देय अरु पायन लागे॥
निर्भय वचन कुंअर सों लेहीं। अपने अमल संग करि देहीं॥
होहिं विदा पावहिं पहिराऊ। पंथ अनीति करे ना काऊ॥
याचक जन जन जांचे आऊ। गये मुदित बहु धन पाऊ॥
विश्राम:-
धरनी देखत पंथपर, आवत यही प्रकार।
तंहसे योजना तीस पर, बसहि पिता परिवार॥253॥
चौपाई:-
चरचत चाह कुंअर तहं पावा। मातु पिता दूवो कुम्हिलावा॥
अगुमन कुंअर पठाव संदेसा। जाय जनावहु चाह न रेशा॥
पंचवटी गौ धावन आई। परम अनंद सबे पहुंचाई॥
पहुंचत सुधि प्रमुदित भौ राजा। दीन्हो काटि कुलह जनु बाजा॥
तेहिते चौगुन सुख भौ माता। एक गये पाये जनु साता॥
जेते लोग नगर के रहेऊ। प्रान संदेह अमय जनु कहेऊ॥
विश्राम:-
नृपति संदेश पठायऊ, जंह लगि राजसमाज।
जनु सुत जनमो आज घर, रंग पाव जनु राज॥254॥