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गेंद / आत्मा रंजन

रबर का एक लौंदा भर थी वह
चंचमाते शो केस में रखी सहेज
धूल गंदगी से बचाकर
भरसक बनाया उसे हालांकि
बना सकती थी जितना मशीन

आई बच्चे के हाथ
धकेला उसे धरती पर
तो हुआ नसीब मिट्टी का स्पर्श
उछली धरती से वह खिलती
फूल पौधे की मानिंद
बच्चे के हाथ आते ही
हो गई वह तितली
डोलती डोलती

गौर से देखा-
जाना माँ ने पहली बार
इस लक़दक़ बाज़ार से
क्या कुछ खरीद सकती है वह
मात्र दस रुपए में।