इरावती में प्रकाशित
बहुत शानदार है यह नाम
और थोड़ा अजीब भी
एक ही साथ
जिसमें वीर भी है
और बहादुर भी
यहाँ से आगे तक
22.4 किलोमीटर सड़क
जिन मज़दूरों ने बनायी
उनका उत्साही गैंग लीडर रहा होगा ये
या कोई उम्रदराज़ मुखिया
लो0नि0वि0 की भाषा
बस इतनी ही
समझ आती है मुझे
दूर नेपाल के किन्हीं गाँवों से
आए मज़दूर
उन गाँवों से
जहाँ आज भी मीलों दूर हैं
सड़कें
यों वे बनायी जाती रहेंगी
हमेशा
लिखे जाते रहेगे कहीं-कहीं पर
उन्हें बनाने के बाद
ग़ायब हो जाने वाले कुछ नाम
1984 में कच्ची सड़क पर
डामर बिछाने आए
वे बाँकुरे
अब न जाने कहाँ गए
पर आज तलक धुंधलाया नहीं
उनके अगुआ का ये नाम
बिना यह जाने
कि किसके लिए और क्यों बनायी जाती हैं
सड़कें
वे बनाते रहेंगे उन्हें
बिना उन पर चले
बिना कुछ कहे
उन सरल हृदय अनपढ़-असभ्यों को नहीं
हमारी सभ्यता को होगी
सड़क की ज़रूरत
बर्बरता की तरफ़ जाने के लिए
और बर्बरों को भी
सभ्यताओं तक आने के लिए।
-2004-