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गोआ के पैर / उपेन्द्र कुमार

डोना पाउला का
सूर्यास्त देखना एक लोकप्रिय स्थानीय
आदत भी है
और पर्यटक की विवशता भी।
विभिन्न कथाएँ
कपोल-कल्पित या वास्तविक
सुखान्त-या दुखान्त
जुड़ी हैं सूर्यास्त से
और इसके जादू भरे
रहस्यमय आकाश से
गुजरता सूरज
लाल-पीला हो
हाँफने लगता है
सूर्यास्त तक

चौंकन्ने हो जाते हैं सब
एक पल में ही
एकदम सावधान मुद्रा में
वास्को की तरफ खड़े जहाज
राजभवन की पहाड़ी
और लगातार चक्कर काटता
लाइट हाउस का प्रकाश
सब कुछ
सूर्यास्त से ठीक पहले
स्वागत में
ठंडे और मीठे पानी से भरे
मंगल-कलश ले
चल देती है
माण्डवी
तप्त सागर सतह के ऊपर
करने छिड़काव

धुल जाता है
सारा वातावरण
राजपथ-सा स्वच्छ निर्मल
आकाश कर देता है शुरू
बनाना बिखराना
इन्द्रधनुषी रंगों और
उनके अलग-अलग शेड्स की
झंडियाँ
लाल, पीली, हरी, नीली,
नारंगी और बैंगनी
और..... और.....
समेट कर जिन्हें
जतन से सहेजते जाते हैं
गोआवासी
अपने कार्निवाल
में इस्तेमाल के लिए

सागर
क्षितिज के पास
आकाश की ओर देखता
पसार देता है भुजाएँ
अनन्त तक
सारी तैयारियाँ पूरी हो गईं देख
तेजी से उतरता है
सूरज क्षितिज पर
और फिर धीरे-धीरे
समेट लेता है
उसे अपनी गोद में
सागर

उत्सव समाप्ति पर
सूर्य विहीन आकाश में
उभर आती हैं
रोशनी की दरारें
दिखाई देने लगते हैं
अचानक
बिवाई फटे पैर-
गोआ के