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गोमती किनारे-2 / जया आनंद

गोमती किनारे
बस्ता टाँगे
जाती हुई लड़कियाँ
जैकेट में भरे
 मूंगफली और टॉफियाँ
नाप रही पुल
मानों पूरी दुनियाँ नाप डालेंगी
हँसती, खिलखिलाती, बतियाती,
पुल पर बने हनुमान मंदिर में
दर्शन के बहाने
प्रसाद के बेसन के लड्डू खातीं
फिर चल पड़ती
अपने अपने रास्ते
रास्ते जो साथ-साथ थे
अब अलग-अलग होते जाते
इतने अलग कि एक रास्ता
सात समंदर पार रुकता
तो दूसरा रेल की पटरियों संग
दूसरे तीसरे शहर पहुँचता
और गोमती किनारा छूटता जाता
छूटने का दर्द लिए
भरे मन से जुट जाती लड़कियाँ
दुनियावी चक्करों में
 हाँ ज़िन्दगी में
छूटता है धीरे-धीरे सबकुछ

गोमती किनारे
अब भी चहल पहल है
हाँ उग आई है नई दूब
ये रौनक बनी रहे
यों ही