गोमती किनारे
बसा एक घर
घर बिल्कुल घर जैसा
जिसके दरवाज़े खुले रहते
मेरे लिए हमेशा,
भीतर जाते ही
बँधा मन खुल जाता
जी भर सांस आती
और फिर शुरू होती
एक उड़ान घर के आसमान में
फिर थका हारा मन विहग
पाता विश्रांति घर की ज़मीन पर
जिस पर बिछा होता अपनो का नेह
सहलाते हाथों की थपकी होती
वात्सल्य से भरी दृष्टि होती
फिर बरसता ममता का मेह
भीग जाता पूरा का पूरा मन
भीगा मन सजाता कल के सपने
सपनों के संग होती सुबह
घर के दरवाज़े खुल जाते
राह इंगित करते, दिशा देते
आज भी उस घर के दरवाजे
हमेशा मेरी प्रतीक्षा में बाहें पसारे
गोमती किनारे